अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ
नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए
मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
संधिकाल
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया
है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात
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लौट आया
मधुमास
आज अचानक अंगना में
लौट आया मधुमास प्रिय
क्या तुम भी हो कहीं पास प्रिय?
पंछी नभ में डोल रहे
कलरव में कुछ बोल रहे
नील गगन के पंथी बादल
फागुन के रंग घोल रहे
देते कुछ आभास प्रिय कि-
तुम हो कितने पास प्रिय
पुष्प गन्ध से पगी-पगी
पुरवाई आ गले लगी
धूप -छाँव आँगन में खेलें
दोपहरी कुछ जगी जगी
जागी कुछ-कुछ आस प्रिय कि-
तुम ही हो कहीं पास प्रिय
सूरज की अनुरागी किरणें
कोमल कलियाँ चूम रहीं
नव किसलय की ओढ़ चुनरिया
डाली -डाली झूम रही
कण-कण मुखरित हास प्रिय, क्यों
लगता तुम हो पास प्रिय?
लहरें छेड़ें सुर संगीत
कोकिल के अधरों पे गीत
मुग्ध चातकी के नयनों से
छलक रही चिर संचित प्रीत
मन में इक विश्वास प्रिय कि-
तुम ही हो मधुमास प्रिय
२० अप्रैल २००९ |