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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ

नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए

मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

मैली हो गई धूप

पथ में छाया धूम गुबार
कोहरे में डूबा संसार,
अम्बर से धरती तक आते
मैली हो गई धूप

फीकी पड़ गई सोनल चुनरी
धूमिल सा सब हार शृंगार,
किरणों की डोरी को थामे
ढूँढ़े हरित तरू की डार,
दिशा- दिशा कोलाहल शोर
बहरी हो गई धूप

नदिया की लहरों का दर्पण
अंग-अंग निहारा जिसने,
सागर संग अठखेली करती
कण-कण रूप सँवारा जिसने,
देख के अब धुँधली परछाईं
साँवली हो गई धूप

पिघले पर्वत, निर्जन उपवन
दूषित वायु, पंकिल ताल,
व्याकुल पंछी कैसे तोड़ें
घुटी-घुटी साँसों का जाल,
धरती का दुख नयनों में भर
गीली हो गई धूप

२ मई २०११

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