अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ

नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए

मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

 

क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन

मोती माणिक की धरती से
माँगे केवल सुख के कण ।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

निशि तारों की लड़ियाँ गिन -गिन
अनगिन रातें बीत गईं,
भोर किरण की आस में मुझ
विरहन की अँखियाँ भीज गईं।
कह दो ना अब कैसे झेलूँ
पर्वत जैसे दूभर क्षण ।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

स्वप्न लोक आलोक खो गया
रात अमा की लौट के आई,
पतवारों सी प्रीत थी तेरी
मँझधारों में छोड़ के आई ।
नयनों में प्रतिपल आ घिरते
सजल, सघन, अश्रुमय घन।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन ?

नियति का लेखा मिट न पाया
अश्रु-जल निर्झर बरसाया,
निश्वासों के गहन धूम में
अँधियारा पल-पल गहराया।
अन्तर के अधरों पे मेरे
मौन बैठा प्रहरी बन।
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?

२८ जनवरी २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter