अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ
नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए
मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
संधिकाल
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया
है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात
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सन्धिकाल
सुबह की धूप ने अभी
ओस बूँद पी नहीं
आँख भोर की अभी
नींद से जगी नहीं
पंछियों की पाँत ने
नभ की राह ली नहीं
किरणों की डोरियाँ अभी
शाख से बँधी नहीं
शयामली अलक अभी
रात की बँधी नहीं
चाँद को निहारती
चातकी थकी नहीं
तारों की माल मे जली
दीपिका बुझी नहीं
हर शृंगार की कली
शाख से झरी नहीं
धरा को आँख में सजा
चाँद भी रुका-रुका
पुनर्मिलन की आस में
गगन भी झुका झुका
द्वार पर दिवस खड़ा
आँख रात की भरी
विरह और मिलन की
कैसी यह निर्मम घड़ी
२० अप्रैल २००९ |