अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ
नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए
मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
संधिकाल
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया
है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात
दोहों में-
मेंहदी रंजित पाँव धर
मैं चली तो जग चला
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मन की बात
मन की बात बताऊँ, रामा !
सुख की कलियाँ
गिरह बाँधूँ
नदिया पीर बहाऊँ, रामा !
माथे की तो पढ़ न पाई
आखर भाषा समझ न आई
नियति खेले आँख मिचौनी
अँखियाँ रह गईं बँधी बँधाई
हाथ थाम,
राह डगर सुझाए
ऐसा मीत बनाऊँ, रामा !
कभी दोपहरी झुलसी देहरी
आन मिली शीतल पुरवाई
कभी अमावस रात घनेरी
जुगनू थामे जोत जलाई
विधना की
अनबूझ पहेली
किस विध अब सुलझाऊँ, रामा !
ताल तलैया, पोखर झरने
देखें अम्बर आस लगाए
नैना पल-पल ढूँढ़ें सावन
बरसे, मन अँगना हरियाए
धीर धरा
पतझार बुहारी
रुत वसंत मनाऊँ, रामा !
२ मई २०११ |