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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ

नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए

मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

  मेंहंदी रंजित पाँव धर

मेंहदी रंजित पाँव धर, कण कण कनक लुटाय,
धूप करे अठखेलियाँ, धरती गले लगाय।

नील गगन का आँगना, किरणें खेलें खेल,
धूप सजाए अल्पना, छाँव काढ़ती बेल।

खोल झरोखा आ मिली, झिलमिल करती धूप,
अंग-अंग केसर झरे, चन्दन भीगा रूप।

स्वागत अँगना बोलता, धूप धरे जब पाँव,
कलियों में नवरंग हैं, सोने-सा घर गाँव।

कभी अटरिया आन चढ़, कभी झूलती डाल,
अल्हड़ यौवन अंग में, हिरणी सी मद चाल।

चाँद की रानी चन्द्रिमा, दिवस सोहती धूप,
जिसके मन में जो बसे, वो ही मन का भूप।

ना हँसती ना बोलती, ना खिलता रंग रूप,
बादल ने क्या कह दिया, रूठ गई क्यों धूप।

पर्वत बैठी दो घड़ी, सूरज से बतियाय,
बाँह पसारे ये धरा, तरूवर धीर बँधाय।

छाँव पूछती धूप से, मैं शीतल तू आग,
हँसी धूप कह सुन सखी, अपने अपने भाग।

ताल तलैया ढूँढ़ते, ढूँढ़ें पनघट कूप,
ना जाने कब आएगी, वह परदेसिन धूप

४ जनवरी २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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