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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ

नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए

मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

दोहों में-
मेंहदी रंजित पाँव धर
मैं चली तो जग चला

 

कैसे बीनूँ कहाँ सहेजूँ

कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
बाँध पिटारी किसको भेजूँ
मन क्यों इतना
बिखर गया है ?

खोल अटरिया काग बुलाऊँ
पूछूँ क्या संदेसा कोई ?
बीच डगरिया नैन बिछाऊँ
पाहुन का अंदेसा कोई ?
कैसे बंदनवार सजाऊँ
देहरी-आँगन
बिखर गया है

कोकिल गाए, आस बँधाए
भीनी पुरवा गले लगाए
किरणें छू कर अंग निखारें
रजनी गन्धा अलक बँधाए
कैसे सूनी माँग सँवारूँ
कुँकुम-चन्दन
बिखर गया है

इक तो छाई रात घनेरी
दूजे बदरा बरस रहे
थर-थर काँपे देह की बाती
प्रहरी नयना तरस रहे
कैसे निंदिया आन समाए
पलकन अंजन बिखर गया है

२ मई २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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