अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ
नए गीतों में-
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
मन की बात
मैली हो गई धूप
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
पाती
बस तेरे लिए
मन रे कोई गीत गा
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
संधिकाल
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया
है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात
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आश्वासन
विदा की वेला में सूरज ने
धरती की फिर माँग सजाई
तारक वेणी बाँध अलक में
नीली चुनरी अंग ओढ़ाई
नयनों में भर सांझ का अंजन
हर सिंगार की सेज बिछाई
और कहा सो जाओ प्रिय
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
भोर किरण कल प्रात: तुझे
चूम कपोल जगाएगी
लाल गुलाबी पुष्पित माला
ले द्वारे पर आएगी
पुनर्मिलन के सुख सपनों की
आस में तू शरमाएगी
उदयाचल पर खड़ा मैं देखूँ
तू कितनी सज जाएगी
पलक उठा तू मुझे देखना
मैं किरणों में मुसकाऊँगा ।
कल फिर लौट के आऊँगा ।
दोपहरी की धूप छाँव में
खेलेंगे हम आँख मिचौली
डाल-डाल से पात-पात से
छिपकर देखूँ सूरत भोली
प्रणय पुष्प की पाँखों से तब
भर दूँगा मैं तेरी झोली
किरणों के रंगों से हम तुम
खेलेंगे तब प्रीत की होली
दूर क्षितिज तक चलना संग संग
नयनों में भर ले जाऊँगा
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
मैं कल फिर लौट के आऊँगा ।
२८ जनवरी २००८ |