अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ-
नये गीतों में-
खिड़की से झाँके
दीवानों की बस्ती में
मन
मेरा आज कबीरा सा
मैंने भी बनवाया घर
स्वागत
ओ ऋतुराज
माहिया में-
तेरह माहिये
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
पाती
बस तेरे लिए
मन की बात
मन रे कोई गीत गा
मैली हो गई धूप
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
संधिकाल
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया
है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात
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खिड़की से
झाँके
बार-बार
खिड़की से झाँके
मौसम हुआ दीवाना सा
कुछ पगला सा, मनमाना सा
नयनों से दे दस्तक-आहट
चितवन में कुछ बोल रहा
कनखी से संकेत करे कुछ
साँकल मन की खोल रहा
साँसों से जब लिखे इबारत
लगता कुछ पहचाना सा
धूप किरन आ धरे हथेली
अंग छुए, मनुहार करे
इक पल छिटके रंग वसंती
दूजे नेह बौछार झरे
दूत बना इक पवन झकोरा
छेड़े राग सुहाना सा
क्यों न आया पोष-माघ में
कौन देस जा डाला डेरा
पश्चिम नगरी जादूगरनी
किस माया ने बाँधा घेरा
बदली बदली सूरत तेरी
रूप रंग बेगाना सा
लोग कहें तुझको बंजारा
गाँव यहाँ, औ ठाँव वहाँ
बाँध न पाए बंधन बाधा
ढ़ाई आखर रीत कहाँ
तू क्या जाने बिन तेरे यह
अँगना हुआ वीराना सा
७ अप्रैल २०१४ |