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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ-

नये गीतों में-
खिड़की से झाँके

दीवानों की बस्ती में
मन मेरा आज कबीरा सा
मैंने भी बनवाया घर
स्वागत ओ ऋतुराज

माहिया में-
तेरह माहिये

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
पाती
बस तेरे लिए

मन की बात
मन रे कोई गीत गा
मैली हो गई धूप

मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

 

 

दीवानों की बस्ती में

हँसी ठिठोली, चुहल चुटकुले
दीवानों की बस्ती में
दिन तो बीते उत्सव मेले
रातें मौज परस्ती में

उलझन की ना खड़ी दीवारें
ना कोई खाई रिश्तों में
मोल भाव ना मुस्कानों का
ले लो जितना किश्तों में

खुले हाथ बिकती हैं खुशियाँ
भर लो झोली सस्ती में

चैन की बंसी, गीत गुनगुने
माथे पर ना शिकन कहीं
अभिमानों के महल कहीं ना
साहु- सेठ का विघ्न नहीं

सुख़-दुःख दोनों खेला करते
धूप –छाँव की मस्ती में

मन तो रहता खुली तिजोरी
ताला चाबी रोग नहीं
रूखी सूखी बने रसोई
हाँडी छप्पन भोग नहीं

चार धाम खुद आन बसे हैं
सब की घर गृहस्थी में

ताम झाम सब धरे ताक पे
किया वही जो लगा सही
झूठ कपट का कवच न पहना
खरी –खरी ही सदा कही

ना नेता ना चपल चाकरी
समदर्शी हर हस्ती में

७ अप्रैल २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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