अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ-
नये गीतों में-
खिड़की से झाँके
दीवानों की बस्ती में
मन
मेरा आज कबीरा सा
मैंने भी बनवाया घर
स्वागत
ओ ऋतुराज
माहिया में-
तेरह माहिये
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
पाती
बस तेरे लिए
मन की बात
मन रे कोई गीत गा
मैली हो गई धूप
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
संधिकाल
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया
है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात |
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मन मेरा आज
कबीरा सा
मन मेरा आज कबीरा सा
अपनी धुन में गाता फिरता
ढपली और मँजीरा सा
छूटा जग का ताना –बाना
अपना ही घर लगे बेगाना
गली –गली फकीरा सा
ना जाए अब मथुरा काशी
ना ढूँढे रत्नों की राशि
कंकर-कंकर हीरा सा
बाहर भीतर एक रूप मैं
कभी मैं साधु कभी भूप मैं
रंग –रंग अबीरा सा
दूर डगर अब चला अकेला
बाँध न पाए जग का मेला
सागर तीरे धीरा सा
७ अप्रैल २०१४ |