अनुभूति में
शशि पाधा की रचनाएँ-
नए दोहों में-
धूप तिजोरी बंद हुई
गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
खिड़की से झाँके
चलूँ
अनंत की ओर
दीवानों की बस्ती में
पाती
बस तेरे लिए
मन की बात
मन मेरा आज कबीरा सा
मन रे
कोई गीत गा
मैंने भी बनवाया घर
मैली हो गई धूप
मौन का सागर
लौट आया मधुमास
स्वागत
ओ ऋतुराज
संधिकाल
दोहों में-
गूँगी मन की पीर
माहिया में-
तेरह माहिये
संकलनों में-
फूले कदंब-
फूल कदंब
होली है-
कैसे
खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन-
नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा-
वसंतागमन
नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन
मन की बात |
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धूप तिजोरी
बंद हुई
धूप तिजोरी बंद हुई, चाबी सूरज हाथ
दोपहरी की नींद में, शीत लगाए घात
अंग-अंग ठिठुरन लगी, काँपे तरुवर नीड़
पंछी ढूँढें धूप को, उड़ते बाँधे धीर
घर-घर में बँटने लगे, गुड़ तिल मेवे थाल
शाल दुशाले पूछते, इक दूजे का हाल
ना दस्तक ना आहटें, हिम बरसी चुपचाप
अम्बर से धरती कहे, सुनी नहीं पदचाप
ना डाली ना शिखर को, ढाँपे कोई पात
शीत पवन चुभने लगी, कोमल कलिका गात
ना जाने कब आएगा, घर अपने दिनमान
पश्चिम का जादू बुरा, ठगा गया अनजान
जड़वत से पर्वत खड़े, हिम की चादर ओढ़
सखी सहेली धूप का, चलता ना अब जोर
दिन बीते नभ देखते, रातें नीरव मौन
सूरज का संदेश ले, आवेगा घर कौन
ऋतुयों के इस फेर में, धरती चलती संग
नीली चादर ओढ़ के, चलता अम्बर संग
बाँधी गठरी शिशिर ने, आया फागुन मास
खुली तिजोरी धूप की, कण-कण बिखरा हास
२६ जनवरी २०१५ |