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अनुभूति में सतपाल ख़याल की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अर्जी दी तो
किसी रहबर का
जब से बाजार
जो माँगो
शाम ढले

छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत

अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
लो चुप्पी ली साध

संकलन में-
होली है- रंग न छूटे प्रेम का
      - बात छोटी सी है

 

शाम ढले

शाम ढले मन पंछी बनकर दूर कहीं उड़ जाता है
सपनों के टूटे धागों से ग़ज़लें बुनकर लाता है

रात की काली चादर पर हम क्या-क्या रंग नहीं भरते
दिन चढ़ते ही क़तरा -क़तरा शबनम सा उड़ जाता है

तपते दिन के माथे पर रखती है ठंडी पट्टी शाम
दिन मज़दूर सा थक कर शाम के आँचल में सो जाता है

जाने क्या मज़बूरी है जो अपना गांव छोड़ ग़रीब
शहर किनारे झोंपड़ -पट्टी में आकर बस जाता है

जलते हैं लोबान के जैसे बीते कल के कुछ लम्हें
क्या खोया? क्या पाया है मन रोज़ हिसाब लगाता है

चहरा -चहरा ढूंढ रहा है,खोज रहा है जाने क्या
छोटी-छोटी बातों की भी, तह तक क्यों वो जाता है

कैसे झूट को सच करना है,कितना सच कब कहना है
आप "ख़याल" जो सीख न पाए वो सब उसको आता है

१ मई २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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