अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अर्जी दी तो
किसी रहबर का
जब से बाजार
जो माँगो
शाम ढले
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
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बात छोटी
सी है
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जो माँगो
जो माँगो वो कब मिलता है
अबके हमने दुःख माँगा है
घर में हाल बज़ुर्गों का अब
पीतल के बरतन जैसा है
नाती पोतों ने ज़िद्द की तो
अम्मा का संदूक खुला है
अब तुम राख उठा कर देखो
क्या -क्या जिस्म के साथ जला है
दूब चमकती है खेतों में
बरगद चिंता मेँ डूबा है
रोती आँखें हँसता चेहरा
अंगारों पर फूल खिला है
आँखों से है ओझल मंज़िल
पैरों से रस्ता लिपटा है
याद ”ख़याल” आई फिर उसकी
आँखों से आँसू टपका है
१ मई २०२२
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