अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत
नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
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बात छोटी
सी है
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जाने किस बात की
जाने किस बात की अब तक वो सज़ा देता
है
बात करता है कि बस जी ही जला देता है
बात होती है इशारों में जो रूठे
है कभी
उसका हम पर यूँ बिगड़ना भी मजा देता है
बात करेने का सलीक़ा भी तो कुछ
होता है
वो हरिक बात पे नशतर-सा चुभा देता है
हमने दी है जो कभी उसको खुशी की
अर्ज़ी
पुर्जा-पुर्जा वो हवाओं में उड़ा देता है
है अँधेरों में चराग़ों सा वजूद
उसका "ख़याल"
राह भटका हो कोई राह दिखा देता है
२२ मार्च २०१० |