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अनुभूति में सतपाल ख़याल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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सियासत

नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़

अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध

संकलन में-
होली है- रंग न छूटे प्रेम का
      - बात छोटी सी है

 

चला जा रहा था

चहरे टटोलता
खु़द से ही कुछ बोलता
चला जा रहा था
सवालों की गाँठें
ख़यालों के झुरमुट
मर चुके लम्हे
पुराने कुछ साथी
वो चहरे, शहर, नहर, बाग़, वो गली, चौबारे
किसी की खिलती हँसी
कुछ पल को उभरते
फिर गायब हो जाते
मै सोचता
खु़द से ही कुछ बोलता
चला जा रहा था।

१ दिसंबर २०१८

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