अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत
नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
-
बात छोटी
सी है
|
|
गुज़ारिश
भीतर से खोखले हो चुके
हरे से दिखने वाले इस पेड़ पर
दीमक की लार से
विकास का ये इश्तहार
ज़रा ध्यान से चिपकाइए
और
उम्मीद के बचे खुचे
आधे पीले पत्तों पर
नए भरोसे का
ये हरा पेंट
किसी मंझे हुए चित्रकार
से लगवाना
ताकि फिर से
नए मौसम का भ्रम सा हो जाए
१ दिसंबर २०१८ |