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अनुभूति में सतपाल ख़याल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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सियासत

नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़

अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध

संकलन में-
होली है- रंग न छूटे प्रेम का
      - बात छोटी सी है

  क्या है उस पार

क्या है उस पार, कोई शख़्स ये समझा न सका
क्या जगह है जो गया, लौट के भी आ न सका

मैं तो आदी हूँ विरासत में मिले ग़म मुझको
जो मेरे साथ रहा वो भी खुशी पा न सका

मैं सफ़र में हूँ यही रेत मुकद्दर मेरा
भटका दरिया हूँ समंदर का पता पा न सका

टूटे पत्तों को शजर बनके निहारा मैनें
जो गए उनको मनाकर भी कभी ला न सका

किससे मिलना है गले, हाथ मिलाना किससे
फ़ासला किससे रखूँ कितना समझ आ न सका

२२ मार्च २०१०

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