अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है

 

रंग न छूटे प्रेम का

रंग न छूटे प्रेम का, लगे जो पहली बार
धोने से दूना बढ़े, बढ़ती रहे खुमार

पल-पल बदले रूप को, मन के रंग हज़ार
इक पल डूबा शोक में , इक पल उमड़ा प्यार

राधा नाची झूम के, भीगे नंद गोपाल
प्रेम की इस बौछार में, उड़ता रहा गुलाल

कहीं विरह की धार से, टूटी प्रेम पतंग
मन वैरी जलता रहा, इसे न भाए रंग

छोड़ तू अपने रंग को, रंग ले प्रभु के रंग
प्रीत जगत की छोड़ के, कर साधुन का संग

सब रंग जिसके दास हैं, उसी प्रभु से नेह
कण-कण डूबा देखिए, घट-घट बरसे मेह

प्रेम के सच्चे रंग को, गई है दुनिया भूल
नफ़रत के इस रंग से, जले दिलों के फूल

सतपाल ख्याल
५ मार्च २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter