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अनुभूति में सतपाल ख़याल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
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केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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सियासत

नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़

अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध

संकलन में-
होली है- रंग न छूटे प्रेम का
      - बात छोटी सी है

 

इतने टुकड़ों में

इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ मैं
खुद का कितना हूँ सोचता हूँ मैं

ये हुनर आते आते आया है
अब तो ग़ज़लों में ढल रहा हूँ मैं

हो असर या न हो किसे परवाह
काम सजदा मेरा दुआ हूँ मैं.

कैसे बाजार में गुजर होगी
बस यही सोचकर बिका हूँ मैं

२६ मई २००८

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