अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत
नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
-
बात छोटी
सी है
|
|
इल्लाजिकल प्ले
मशीनें लाजिकल होती हैं
किसी फल का टूटकर जमीन पे गिरना
लाजिकल होता है
लाजिकल होते हैं रात और दिन
सर्दी गर्मी सब लाजिकल हैं
हाँ लेकिन सपने लाजिकल नहीं होते
न खुली आँख के
और न ही बंद आँखों के
१ दिसंबर २०१८ |