अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
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सियासत
नई रचनाओं में-
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
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बात छोटी
सी है
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बाप को चाकलेट देकर
जागिंग के लिए भेजती
और सीटी बजाकर
किसी लड़के को पास बुलाती
भारतीय युवा पीड़ी की प्रतीक
एक लड़की
लाइफ़ के मज़े लेती है।
कुछ भी खरीदो
बस..मज़ा लो
बनियान, परफ़्यूम,
टुथपेस्ट, पान मसाला....
बाज़ार दीमक की तरह
चाट रहा है
मध्यम वर्ग को और
लूट रहा है हमारी संस्कृति
हमारे पारिवारिक मूल्य
हमारे घर
और हम
परिवार सहित देखते हैं
टेलिवीज़न
१ दिसंबर २०१८ |