अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अर्जी दी तो
किसी रहबर का
जब से बाजार
जो माँगो
शाम ढले
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
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बात छोटी
सी है
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अर्जी दी तो
अर्ज़ी दी तो निकली धूप
कोहरे ने ढँक ली थी धूप
दो क़दमों पर मंजिल थी
ज़ोरों से फिर बरसी धूप
बूढ़ी अम्मा बुनती थी
गर्म स्वैटर जैसी धूप
धूप में तरसे साए को
साए में याद आई धूप
भूखी – नंगी बस्ती ने
खाई जूठन पहनी धूप
गुरबत के चूल्हे पे है
फ़ाकों की फीकी सी घूप
ढलती शाम ने देखी है
लाठी लेकर चलती धूप
चाय के कप में उबली
अखबारों की सुर्खी धूप
जीवन क्या है बोल “ख़याल “
खट्टी-मीठी तीखी धूप
१ मई २०२२
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