अनुभूति में
सतपाल ख़याल की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अर्जी दी तो
किसी रहबर का
जब से बाजार
जो माँगो
शाम ढले
छंदमुक्त में-
इल्लाजिकल प्ले
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन
सियासत
अंजुमन में-
इतने टुकड़ों में
क्या है उस पार
जब इरादा
जाने किस बात की
दिल दुखाती थी
बदल कर रुख़
लो चुप्पी ली साध
संकलन में-
होली है-
रंग
न छूटे प्रेम का
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बात छोटी
सी है
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जब से बाजार
जब से बाज़ार हो गई दुनिया
तब से बीमार हो गई दुनिया
चंद तकनीक बाज़ हाथों में
एक औज़ार हो गई दुनिया
जैसे जैसे दवाएं बढती गईं
और बीमार हो गई दुनिया
जब से रुकने को मौत मान लिया
तेज़ रफ्तार हो गई दुनिया
कोई झूटी सी खबर लगती है
एक अखबार हो गई दुनिया
क्यों कफन इश्तहार बनने लगे
कैसे सरकार हो गई दुनिया
है खुले पिंजरे में क़ैद “ख़याल”
ख़ुद गिरफ्तार हो गई दुनिया
१ मई २०२२
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