पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ९. २०१८

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तकलीफें हैं

 

 

तकलीफे हैं पर अपना कर्तव्य
जतन से निभा रही है
बहू शहर की
माटी के चूल्हे पर
खाना बना रही है

कुढ़ती है पर रीति रिवाजें
अच्छी तरह निभा लेती है
पर्दे से नफरत है
लेकिन
घूँघट काढ़ लजा लेती है
जब देखो तब बैठ प्रेम से
पाँव सास के दबा रही है

घिन तो आती गोबर से पर
शिकवा नहीं किया करती है
अपने कोमल हाथों
कच्चा आँगन
लीप लिया करती है
पिया तड़पते दुलहिन
कैसे कैसे दुखड़े उठा रही है

नहीं कोसती कभी पिता को
नहीं झगड़ती है माँ से
अपने मन को
समझा लेती
किस्मत की परिभाषा से
सदा दुखी थोड़े रहती है
देखो तो मुस्कुरा रही है

- रविशंकर मिश्र रवि

इस माह

गीतों में-

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रविशंकर मिश्र रवि

अंजुमन में-

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रमा प्रवीर वर्मा

दिशांतर में-

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आस्ट्रेलिया से रेखा राजवंशी

क्षणिकाओं में-

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मिथिलेश दीक्षित

लंबी कविताओं में-

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धूमिल की पटकथा

पिछले माह
अशोक विशेषांक में

गीतों में-अनिल कुमार वर्मा, ऋताशेखर मधु, ओमप्रकाश नौटियाल, कल्पना मनोरमा, गीता पंडित, गोपाल कृष्ण आकुल, पंकज परिमल, बसंत कुमार शर्मा, भावना तिवारी, मधु प्रधान, मधु शुक्ला, शशि पाधा, श्रीधर आचार्य शील, शैलेष गुप्त वीर, सुनीता सिंह, सुरेन्द्रपाल वैद्य।

छंदमुक्त में- परमेश्वर फुँकवाल, मधु संधु, सरस्वती माथुर, सुरेन्द्रनाथ कपूर।

छंदों में- ज्योतिर्मयी पंत, सुबोध श्रीवास्तव

अंजुमन में- कल्पना रामानी, रमा प्रवीर वर्मा, सुरेन्द्रपाल वैद्य

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी