अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

पेड़ ये अशोक के
 

पेड़ ये अशोक के खड़े ज्यों द्वारपाल हैं
ये रहें जहाँ वे घर सदैव ही बहाल हैं

पात पात झूमते हुए बिखेरते छटा
औषधिय तत्व से भरी हरेक डाल हैं

धूप हो कि छाँव हो खड़े रहें तटस्थ ये
आसमान चूमते दिखे बड़े विशाल हैं

ताम्र पात ,हेमपुष्प, नाम हैं अशोक के
शोक भी मिटाये रोग के भी कटते जाल हैं

फूल,बीज जड़ अशोक की गुणों से हैं भरी
जो अचूक हैं दवा अशोक की ही छाल हैं

लाल, पीले रंग के खिले जो इसके फूल तो
यों लगे कि जैसे कोई मोतियों के थाल हैं

- रमा प्रवीर वर्मा
१ अगस्त २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter