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चुप क्यों हो बोलो अशोक
 

ईंट पत्थरों की दुनिया में
क्यारी कोई बची नहीं
मन की माटी बड़े यत्न से
रोपा पेड़ अशोक

हर्ष शोक के रस्तों पर मैं
थकी थी चलती-चलती
वादों और विवादों में मैं
घिरी थी लड़ती-लड़ती

साथ रहा हर पग पर मेरे
ध्रुव सा पेड़ अशोक

बन्धु बाँधव पूछा करते
हर पल कैसे हरी-हरी
पीर छुए न ताप तपाये
बौध ज्ञान से भरी-भरी
आशीषों की पाँखें झरता
पुष्पित पेड़ अशोक


भली बुरी अब तन ना लागे
मीठा कड़ुवा भेद नहीं
देखी रीती भाग गागरी
रत्ती भर भी खेद नहीं

वैरागी सा मन में रहता
योगी पेड़ अशोक

- शशि पाधा  
१ अगस्त २०१८

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