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ये अशोक के पेड़ सुहाने |
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किस युग से हैं खड़े न जाने, घर-बागों में
ये अशोक के पेड़ सुहाने, घर-बागों में
लाल फूल, पत्ते हरियल, कितने मनभावन
सदा गुँजाते स्वस्थ तराने, घर-बागों में
पास बुलाते झूम-झूम कर हमें मित्रवत
बीता निज इतिहास सुनाने, घर-बागों में
ये प्रतीक शुभता के देते, हैं जन-जन को
सौख्य सम्पदा के नज़राने, घर-बागों में
छाल-पत्र में ले औषध-गुण, खड़े स्तंभवत
जन-जागृति का अलख जगाने, घर-बागों में
देते रहना स्थान ‘कल्पना’, इन पुरखों को
याद रहे मगरूर ज़माने, घर-बागों में
- कल्पना रामानी
१ अगस्त २०१८ |
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