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चुप क्यों हो बोलो अशोक
 

चुप क्यों हो बोलो अशोक
तेरे रहते क्यों
रहे शोक ?

हर ओर जंग है नफरत है
भूला मानव ही मानवता
कुछ कच्ची कलियाँमसल रहे
इनसे शर्मिंदा दानवता
इन पर कैसे
अब लगे रोक

उलझे ऐसे भ्रमजालों में
दिखता है ओर न छोर कहीं
बेबस ,गहन अँधेरों में
गुमसुम आँखें चुपचाप बहीं
शरणालय ही
आतंकलोक

डालें टूटीं गिर गये नीड़
बिखर गये तिनके -तिनके
सहमी हिरनी थर-थर काँपे
चल रहे भेड़िये तन -तन के
बाज उड़ें
बिन रोक - टोक

- मधु प्रधान  

१ अगस्त २०१८

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