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कहते जिसे अशोक |
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प्रकृति सहेली मनुज की,
हर लेती सब शोक।
प्रथम नाम है वृक्ष का, कहते जिसे
अशोक।।
पूजन अर्चन हो जहाँ, या शुभ मंगल
काज।
द्वारे वंदनवार में, कोमल पल्लव
साज।।
महिमा वृक्ष अशोक की, गाते ग्रन्थ
पुराण।
देव -यक्ष -गन्धर्व प्रिय, शोभे
मन्मथ बाण।।
नूपुर ध्वनि सँग आलता, सजे सुंदरी
पाँव।
देती थीं मृदु थाप तो, दें अशोक सुख
छाँव।।
राहों में सजते खड़े, अब भी दिखते
वृक्ष।
पर लोगों का प्यार अब, मिले नहीं प्रत्यक्ष।।
पात- छाल सँग पुष्प दें,विविध रोग से मुक्ति।
त्याग और सौहार्द की,बता रहा है शक्ति।।
मन मोहे रँग रूप से, देता औषधि खूब।
महिलाओं के रोग में, संजीवनी
स्वरूप।।
पर्ण कुटी से ले गया ,सीता को लंकेश।
तरु अशोक बगिया तले,रही तापसी वेश.||.
परम मित्र हैं वृक्ष ये,घर बाहर दें रोप।
खुशहाली सबको मिले,रोकें प्रकृति प्रकोप।।
- ज्योतिर्मयी पंत
१ अगस्त २०१८ |
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