अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शार्दूला की रचनाएँ

नई रचनाएँ-
मैं हूँ वो प्यास
खोटा सिक्का
तीन छोटी रचनाएँ-
   बोलो कहाँ उपजाई थी
   कब आओगे नगरी मेरी
   ये गीत तेरा

ये ज़मीं प्रिय वो नहीं

कविताओं में-
आ अब लौट चले

आराधना
चाहत के चिराग
चार छोटी कविताएँ
चिनगारी
तेरे पीछे माया
दोस्त
दोहे
बसंत आया
पारस
माँ
विदा की अगन
सूरज में गर्मी ना हो
हँसी 

 

विदा की अगन

मैं कोयला हूँ कहो तो आग दूँ
या फिर धुआँ कर दूँ।
मुझे डर है ना दर्देदिल
निगाहों से बयाँ कर दूँ।

मुझे अफ़सोस है तुमने मुझे
अपना नहीं समझा।
खुशी तो बाँट ली मुझ से
मगर गम पास ही रखा।

सुना था दिल की मिट्टी में
ये गम बन फूल खिलता है।
बेगरज दोस्त दुनिया में
बड़ी किस्मत से मिलता है।

चलो छोड़ो गिले शिकवे
विदा होने की बारी है।
इस कोयले में चमक जो है
अमानत वो तुम्हारी है।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter