अनुभूति में
शार्दूला की रचनाएँ
नई रचनाएँ-
मैं हूँ वो प्यास
खोटा सिक्का
तीन छोटी रचनाएँ-
बोलो कहाँ उपजाई थी
कब आओगे नगरी मेरी
ये गीत तेरा
ये ज़मीं प्रिय वो नहीं
कविताओं में-
आ अब लौट चलें
आराधना
चाहत के चिराग
चार छोटी कविताएँ
चिनगारी
तेरे पीछे माया
दोस्त
दोहे
बसंत आया
पारस
माँ
विदा की अगन
सूरज में गर्मी ना हो
हँसी
|
|
चिनगारी
ज़ोर लगाए
बारी बारी
दुनिया सारी
बुझ ना पाये
ये चिंगारी
हवा इसे तू देते रहना
दिल में सपन समेटे रहना
हँसी होंठ पे जो रखता है
हर गम से वो लड़ सकता है
ऊँच नीच सबकी तैयारी
बुझ ना पाये ये चिंगारी
माना पैसा बहुत जरूरी
बन ना जाये ये मजबूरी
सबसे बढ़कर खुशी है मन की
गाते रहना धुन जीवन की
गीत सुने तेरा दुनिया सारी
बुझ ना पाये ये चिंगारी
दुनिया में इंसाफ ना हरदम
स्याही की चादर ओढ़े ग़म
फिर भी जो दिल जोड़े दिलों से
हँस के जो खेले ख़तरों से
सूरज भी है उसका पुजारी
बुझ ना पाये ये चिनगारी
ज़ोर लगाए
बारी बारी
दुनिया सारी
बुझ ना पाये
ये चिनगारी
८ सितंबर २००८
|