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सूरज में गर्मी ना हो
हँसी 

 

चिनगारी

ज़ोर लगाए
बारी बारी
दुनिया सारी
बुझ ना पाये
ये चिंगारी

हवा इसे तू देते रहना
दिल में सपन समेटे रहना
हँसी होंठ पे जो रखता है
हर गम से वो लड़ सकता है
ऊँच नीच सबकी तैयारी
बुझ ना पाये ये चिंगारी

माना पैसा बहुत जरूरी
बन ना जाये ये मजबूरी
सबसे बढ़कर खुशी है मन की
गाते रहना धुन जीवन की
गीत सुने तेरा दुनिया सारी
बुझ ना पाये ये चिंगारी

दुनिया में इंसाफ ना हरदम
स्याही की चादर ओढ़े ग़म
फिर भी जो दिल जोड़े दिलों से
हँस के जो खेले ख़तरों से
सूरज भी है उसका पुजारी
बुझ ना पाये ये चिनगारी

ज़ोर लगाए
बारी बारी
दुनिया सारी
बुझ ना पाये
ये चिनगारी

८ सितंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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