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माँ

याद मुझे आता है हर क्षण
जब पाया था प्यार तेरा
और हाथ बढ़ा के कह ना सका था
मुझ पे माँ एहसान तेरा

मेरी सर्दी मेरी खाँसी
मेरा ताप और बीमारी
हँस के तू अपना लेती थी
करती कितनी सेवादारी

पा कर तेरा स्पर्श तेजस्वी
मैं अच्छा हो जाता था
फिर लूट पतंगें फाड़ जुराबें
देर रात घर आता था

दरवाजे पे खड़ी रही होगी
तू जाने कब से
श्! श्! कर किवाड़ खोलती
'' बाबू जी गुस्सा तुझ से!”

फिर बड़ा हुआ मैं, बना प्रणेता
किस्मत ने पलटा खाया
जो समझ शूल दुनिया ने फेंका
बना ताज उसे अपनाया

सब चाहने वालों से घिर भी
तेरा प्यार ढूँढ़ता हूँ
जो धरती अंकुर पर करती
वो उपकार ढूँढ़ता हूँ .

याद मुझे आता है हर क्षण
जब पाया था प्यार तेरा
और हाथ बढ़ा के कह ना सका था
मुझ पे माँ एहसान तेरा

८ सितंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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