अनुभूति में
शार्दूला की रचनाएँ
नई रचनाएँ-
मैं हूँ वो प्यास
खोटा सिक्का
तीन छोटी रचनाएँ-
बोलो कहाँ उपजाई थी
कब आओगे नगरी मेरी
ये गीत तेरा
ये ज़मीं प्रिय वो नहीं
कविताओं में-
आ अब लौट चलें
आराधना
चाहत के चिराग
चार छोटी कविताएँ
चिनगारी
तेरे पीछे माया
दोस्त
दोहे
बसंत आया
पारस
माँ
विदा की अगन
सूरज में गर्मी ना हो
हँसी
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माँ
याद मुझे आता है हर क्षण
जब पाया था प्यार तेरा
और हाथ बढ़ा के कह ना सका था
मुझ पे माँ एहसान तेरा
मेरी सर्दी मेरी खाँसी
मेरा ताप और बीमारी
हँस के तू अपना लेती थी
करती कितनी सेवादारी
पा कर तेरा स्पर्श तेजस्वी
मैं अच्छा हो जाता था
फिर लूट पतंगें फाड़ जुराबें
देर रात घर आता था
दरवाजे पे खड़ी रही होगी
तू जाने कब से
श्! श्! कर किवाड़ खोलती
'' बाबू जी गुस्सा तुझ से!”
फिर बड़ा हुआ मैं, बना प्रणेता
किस्मत ने पलटा खाया
जो समझ शूल दुनिया ने फेंका
बना ताज उसे अपनाया
सब चाहने वालों से घिर भी
तेरा प्यार ढूँढ़ता हूँ
जो धरती अंकुर पर करती
वो उपकार ढूँढ़ता हूँ .
याद मुझे आता है हर क्षण
जब पाया था प्यार तेरा
और हाथ बढ़ा के कह ना सका था
मुझ पे माँ एहसान तेरा
८ सितंबर २००८
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