शार्दूला के दोहे
थोड़ा मन में चैन जो, तुझ को रहा उधार
तेरी भेजी लकड़ियाँ, मुझको हैं पतवार।
आधी-आधी तोड़ कर, बाँटी रोटी रोज़
पानी में भीगा चूल्हा, जाने किसका दोष।
परचम ना फहराइए, खुद को समझ महान
औरों के भी एब पे, थोड़ी चादर तान।
कम ज़्यादा का ये गणित, विधि का लिखा विधान
तू मुझको दे पा रहा, अपनी किस्मत जान।
और अंत में दोस्तों, तिनका-तिनका जोड़
औरों का मरहम बनें, यही दर्द का तोड़।
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