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तेरे पीछे माया

कब बसंत बौराया कब घिर सावन आया
भूल गई सब भाग दौड़ में तेरे पीछे माया।

कब बसंत बौराया

सहसा बिटिया बड़ी हो गई, छन्न से यौवन आया
लौटेगा क्या समय साथ जो हमने नहीं बिताया।

कब बसंत बौराया

बचपन की आँखों से धुल गई इंद्रधनुष की छाया
रंग ले गया कुछ बालों से हर मुश्किल का साया।

कब बसंत बौराया

धन शोहरत की राह चली, ग़म दबे पाँव से आया
ढूंढ़ा था क्या भला इसे ही, जिस मंज़िल को पाया।

कब बसंत बौराया

कब बसंत बौराया कब घिर सावन आया
भूल गई सब भाग दौड़ में तेरे पीछे माया।

कब बसंत बौराया

24 अगस्त 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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