चार छोटी कविताएँ
स्वप्न
लाख समझाओ
मगर मन कब समझता है
मेरा हर स्वप्न तेरी राह
हो कर ही गुज़रता है।
ख़्वाब
ना ये प्यार है न दोस्ती
ये एक हसीन-सा ख़्वाब है।
तू कहे तो ज़िंदगी
मैं आँख अपनी खोल दूँ।।
हँस के ज़माना कह गया
तेरे पास अब क्या रह गया।
बोलो तो अनमोल तुमको
किस तराजू तोल दूँ।।
वादा
जो वादा तूने किया नहीं
मुझे उस पे क्यों कर यकीन था।
ये तेरे हुनर की हद थी या
मेरे जुनू का था वाकया।।
किरन
तू तो बादल है
चमक मेरी क्या छुपाएगा।
ढक भी लेगा तो
किनारे से जगमगाएगा।।
१२ मई २००८ |