अनुभूति में
शैल अग्रवाल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी
हाइकू में
दोस्त,
योंही,
आज
फिर,
जीवन,
आँसू
संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध
में
शुभकामनाएँ–पिचकारी
यह
होली –
होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास–
आई पगली
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कटघरे में
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मुस्कान
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ममता
पिता की तस्वीर–
बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व–
तमसो मा ज्योतिर्गमय
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दिया और बाती
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धूमिल रेखा
जग का मेला–
चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ :
दो क्षणिकाएँ
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खुदगर्ज
मत माँग
सपने बोने को थोड़ी सी भी जमीं
प्यासे बादल!
देखने वाले तो यही कहेंगे
जिन्दगी से तू कितना हारा है
माँगता फिरता हरदम
ले लिया जब आकाश भी सारा है
भटकन और उड़ान सा यह नाता
मत रो, धरती के सामने
मत कह किसके लिए तूने
अंतस् रीता कर डाला है
माना हर सपने की सुबह नहीं होती
और हर रात भी पूरी नहीं सोती
पर रात ही क्या ––
हर बात तक गुजर जाती है
खुदगर्ज नहीं यह जिन्दगी आज भी
खुशबू और रंग बिखरे पड़े हैं सामने
नेह–जल बिन तेरे तो देख
धरती भी सँवर पाती नहीं।
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