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अनुभूति में शैल अग्रवाल की रचनाएँ- 

छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी

हाइकू में
दोस्त, योंही, आज फिर, जीवन, आँसू

संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध में
शुभकामनाएँ–पिचकारी यह
होली – होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास– आई पगली
                 कटघरे में
                - मुस्कान
                - ममता

पिता की तस्वीर– बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व– तमसो मा ज्योतिर्गमय
                - दिया और बाती
                - धूमिल रेखा
जग का मेला– चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ : दो क्षणिकाएँ

 

एक मौका

बाजी चलती रहती है
हारी गोटी कहती है
एक मौका गर मैं पा जाऊँ
करतब कुछ ऐसे दिखलाऊँ
हारी बाजी जीतकर लाऊँ
मिल ही गई उसे तब एक बाजी
छा गई मन पर गहन उदासी
आहें भर कर वह यों बोली –
क्यों न बनी मैं राजा–रानी
पूरी सेना रक्षा करती
मनमानी मैं चालें चलती
हाथी–घोड़ा जो बन जाती
खंबे सी जम–थम जाती
दुनिया मुझसे हर पल डरती
चाहे जिसे लपक दबाती
ढाई घर तक सब खा जाती
ऊँट भी न बन पाई मैं तो
तिरछी चालें ना दिखलाई
अस्तित्वहीन इस जीवन में तो
बस सीधे–सीधे ही चलना है
दूसरों के लिए ही लड़ना
और लड़ते–लड़ते अब मरना है
गोटी वह सपनों में झूली
अपने कर्तव्य–पथ को भी भूली
मिली उसे तब फिर वही
पिटी गोटियों की लम्बी कतार
जहाँ खड़ी वह देख रही थी
युद्धभूमि को बारबार ––
जब तक खेल खतम नहीं
कब कोई हारा और जीता है
हाथी घोड़ा, ऊँट, सिपाही सभी
खड़े के खड़े वहीं रहे
बुरे वक्त जब बादशाह के पड़े
संगी–साथियों से हाथ मिला
एक प्यादा साहसी बड़ा
राजा के आगे तना खड़ा
झुक गया था बादशाह बेचारा
पास न थी अब चाल दोबारा
पिटी गोटी ने फिरसे यों सोचा
एक मौका गर मैं पा जाऊँ –– 

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