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ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन

 

माँ : दो क्षणिकाएँ

रोज़ दिन के बस्ते में
माँ एक नया सूरज रखती है
रोज़ ही रात हो जाती है
ना बेटा ही उठ कर पढ़ता है
ना माँ आदत बदल पाती है

माँ और बेटी डरी बैठीं
पीढ़ी दर पीढ़ी
यहाँ मत जा वहाँ मत बैठ
कहेंगे क्या चार लोग
चार लोग जो कभी आते नहीं
चार लोग जो गुम हैं
अपनी ही दुनिया में

- शैल अग्रवाल


 

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