अनुभूति में
शैल अग्रवाल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी
हाइकू में
दोस्त,
योंही,
आज
फिर,
जीवन,
आँसू
संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध
में
शुभकामनाएँ–पिचकारी
यह
होली –
होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास–
आई पगली
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कटघरे में
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मुस्कान
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ममता
पिता की तस्वीर–
बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व–
तमसो मा ज्योतिर्गमय
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दिया और बाती
-
धूमिल रेखा
जग का मेला–
चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ :
दो क्षणिकाएँ
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अशांत
छिड़ककर
फ्लिट की तरह बम
शहरों और घरों पर
सोच रहे होंगे जरूर
यहाँ इन्सान नहीं
किसी संक्रामक रोग के
कीटाणु रहते थे शायद
पर यहाँ भी तो देखो
बिखरे पड़े मौतसे
विध्वंस खंडहरों में
भूखे बीमार असहाय
कई मासूम चेहरे
बन्द आँखों से जिनकी
बहती आँसुओंकी एक
अविरल सूखी लकीर
पूछती जो बारबार
हमही आखिर क्यों –
अभी–अभी तो हम
इस धरती पे आए थे
चलना सीख पाए थे
माँ–बाप ने हमारे भी तो
कुछ सपने सजाए थे
रोएँगे नहीं अब यह
भूख से या डर से
रोता नहीं कभी
वह भगवान भी तो
बनाया था जिसने
हमको तुमको
इस सृष्टि को
और उन्हें
जो मारते–मरते
धर्म–देश और
जाति के नाम पर
गुस्से में कभी
तो कभी बस
शान्ति के नामपे
थका शायद वह भी
बनाते–बनाते
अच्छे–बुरे
ये इन्सान
लौट आते
जो बारबार
जिए बगैर ही
यह जीवन
खोटे सिक्कों से
पलट–पलट – –
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