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ज्योति पर्व
संकलन

 

लघु रचनाएँ

हर कोने में

हर कोने में दीप जलाऊँ
घर आँगन रंगोली बनाऊँ

आसोपालव के तोरन से
मुखद्वार को भी सजाऊँ

लक्ष्मी पूजन की थाली में
आस्था का दीपक प्रगटाऊँ

रोशन हो जाये कोना कोना
ऐसी मैं दीवाली मनाऊँ

- आस्था

लो आया

लो आया दिवाली का त्योहार
लिए संगे मुस्कानों का उपहार
पूजते लक्ष्मी और गणेश
माँगते आज दुआएँ विशेष
छुटाते पटाखे और फुलझड़ियाँ
सजाते जगमग-जगमग लड़ियाँ
प्रज्वलित दीपों की यों कतार
गगन से उतरे तारे अपार
सजे सब दुकानों में पकवान
बाँटते हम आपस में मिष्ठान
खुशी छाई है चारों ओर
पहुँचता अंबर तक यह शोर

-डॉ. रीता हजेला 'आराधना'

 

दीप प्रकाश

बहुत साल पहले
गाँव में
घर-घर जाकर
वह
मिट्टी के रंग बिरंगे
दिये बेचा करता
अब वह
थक-सा गया है
कुछ नहीं करता
केवल घर में ही
बैठा रहता है
ऑखों में बुझी बाती रख
फिर भी गाँव के
हर घर से
जलते दियों का प्रकाश
कभी उसके बंद किवाड़ की
दराज से
तो कभी फूटे खपरैलों से
निर्विरोध रिसकर
उसके निर्विकार चेहरे को
प्रकाशित कर रहा है

- सत्यनारायण सिंह

 आशा के दीप

सतत मंडराते मौत के साए
और युद्ध के बीच भी
भारतवंशी प्रज्वलित कर रहे हैं
आशा के असंख्य दीप
दिप्त हो उठा है विश्व का हर देश
दीपमल्लिका, बिजली-पटि्टयों
और लूका के
स्वर्णिम आलोक से

-उषा राजे सक्सेना

मन का दीप

आओ दिये में सूरज भर दें
घर को जग को रौशन कर दें
नयी रौशनी की कंदीलें
घर आँगन और द्वार सजाएँ
अनंत आस्था की बाती से
दीप मन के भी जला लें
मन की चौखट पर टाँकें फिर
प्रेम विश्वास की बंदनवार
आओ मनाएँ मिलजुल कर
इस बार दिवाली का त्योहार

-सरस्वती माथुर

अँधियारे पर

अँधियारे पर जीत दीवाली
बच्चों की है मीत दीवाली,
गाँव-गाँव और शहर-शहर में
मनमोहक है रीत दीवाली।

मौसम बहुत सुहाना लगता
हलकी-हलकी शीत दीवाली,
तम को मिटा उजाला आया
सचमुच में पुनीत दीवाली।

नई किरण आशा की है यह,
मंगलमय मधुगीत दीवाली।

- अज्ञात

दीप का संदेश

दीप का संदेश है यह
प्रीत का अनुदेश है यह
दीपमाला अनगिनत हों
टिमटिमाता दीप न हो
हो प्रखर ज्योती निराली
यों मनाएँ हम दीवाली
दीप हम ऐसे जगाएँ
स्वप्न सोये जाग जाएँ
द्वेष तम मिट जाए जग से
इस धरा पर प्रेम सरसे

-सत्यनारायण सिंह

  दिया और बाती

रात थी घनेरी
बात भी अकेली
उर में सब नेह भरे
बैठा रहा एक दिया
बाती की आस में
अंतस जगमगाने को
भीग गई बाती तब
दिए के नेह से
तिल-तिल
जल जाने को।

-शैल अग्रवाल
 

धूमिल रेखा

तेज़ प्रकाश देते दिए को
जब तुम कटोरी से ढक आए थे
तो वह डरा और सिसका नहीं था
ना ही उसने कोई शिकायत की थी
उसने तो बुझने से पहले
बस इतना ही कहा था
डरना मत दोस्त
मेरी यह धूमिल रेखा भी
तुम्हारे बहुत ही काम आएगी
तुम्हारी उदास आँखों में एकदिन
काजल बनकर मुस्काएगी।

-शैल अग्रवाल

 आलोक पर्व

रात हो अमा की
या हो शरद पूर्णिमा की
तारे आकाश के आँचल में
दीप से झिलमिलाते
दे रहे संदेश
निरंतर उन्नयन और
ज्योतिर्मय विश्व की
यहीं से शुरू होती है शृंखला
आलोक के पर्व दीपावली की

-उषा राजे सक्सेना

तेरा मेरा नाता

हर दीपक की ज्योति बताती
तेरा मेरा नाता
वह नाता जो सदा है पावन
ना कभी अपावन होता
आँधी से लडता है फिर भी
मात नहीं जो खाता
अमाँ का गहरा कालापन भी
जिसको नहीं डिगाता
तेजस्वी बन दीप शिखा सम
जग आलोकित करता
कितने अनुबंधों का साक्षी
दीप राग यह गाता
सत्य प्रेम के अनुबंधों में
पुण्य पुनीत है फलता
पर्व दिवाली नया खोलता
जहाँ प्रेम का खाता

-सत्यनारायण सिंह   

  

 

 

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