अनुभूति में
शैल अग्रवाल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी
हाइकू में
दोस्त,
योंही,
आज
फिर,
जीवन,
आँसू
संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध
में
शुभकामनाएँ–पिचकारी
यह
होली –
होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास–
आई पगली
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कटघरे में
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मुस्कान
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ममता
पिता की तस्वीर–
बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व–
तमसो मा ज्योतिर्गमय
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दिया और बाती
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धूमिल रेखा
जग का मेला–
चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ :
दो क्षणिकाएँ
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बूँद बूँद
जंगल–जंगल आग लगी मन–पाखी ना शांत
एक कहे विश्वास तुम दूजा तुम मेरे एकांत।
सागर की तह में कब डूबी सूरज सी हर बात
लहर–लहर का शोर और रेत–रेत की प्यास।
चाँद छुपा बदली से बोला बढ़ना–घटना जग का भाव
मन-बेचारा-कैसे-जाने-एक-सीमा-तक-लाँघ-सके-ना-पाँव।
तीखे हैं आँखों के सापने तीखी मन की आस
तीखे सूरज की ज्वाला से जलते धरती–आकास।
बूँद–बूँद जो बरसा–रीता भटकेगा अब यह मेघ विपुल
किरन–किरन-धरती-की-प्यास-ओढे-बैठी-नए-इन्द्रधनुष।
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