अनुभूति में
शैल अग्रवाल की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी
हाइकू में
दोस्त,
योंही,
आज
फिर,
जीवन,
आँसू
संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध
में
शुभकामनाएँ–पिचकारी
यह
होली –
होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास–
आई पगली
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कटघरे में
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मुस्कान
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ममता
पिता की तस्वीर–
बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व–
तमसो मा ज्योतिर्गमय
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दिया और बाती
-
धूमिल रेखा
जग का मेला–
चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ :
दो क्षणिकाएँ
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अतीत के खजानों से
अतीत के खजानों से
यादों के रंग चुराकर
मैंने कुछ तस्वीरें बनाई
और मन की सूनी
दीवारों पर टाँग दी
अब यह तस्वीरें मेरी तरफ
प्यार से देखतीं और मुस्कुराती हैं
कभी–कभी तो सूनेपन में
मेरे माथे और बाल तक
सहला जाती है
भीड़ में अकेले में
अक्सर खुद को कहता पाती हूँ
'क्या तुमने मुझे बुलाया?'
भूल जाती हूँ कि
अतीत की ये तस्वीरें तो उस
पुराने कैलेन्डर की तरह होती हैं
जिसके दिन महीने तारीखें
सब बीत चुकी हैं
न कोई उनके पास जाता है
न पलटता है, ना ही देखता है
बस समय की धूल चढ़ती जाती है
और मन में गढ़ी
कील चुभती रह जाती है
फिर भी ए मेरे मनकी
सजीली तस्वीरों,
हठीली कविता बनकर
बाहर मत आ जाना तुम
क्योंकि हममें तुममें से
किसी को भी
अकेले रहने की
आदत नहीं हैं।
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