|
गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं
को संकलन |
|
|
गाँव में अलाव संकलन |
शीत
लहरी में
एक बूढ़े आदमी की प्रार्थना |
|
ईश्वर
इस भयानक ठंड में
जहाँ पेड़ के पत्ते तक ठिठुर रहे हैं
मुझे कहाँ मिलेगा वह कोयला
जिस पर इन्सानियत का खून गरमाया जाता है
एक जिन्दा
लाल
दहकता हुआ कोयला
मेरी अँगीठी के लिए बेहद जरूरी
और हमदर्द कोयला
मुझे कहाँ मिलेगा इस ठंड से अकड़े हुए शहर
में
जहाँ वह हमेशा छिपाकर रखा जाता है
घर के पिछवाड़े
या गुसलखाने की बगल में
हथेलियों की रगड़ में दबा रहता है जो
जो इरादों में होता है
जो यकायक सुलग उठता है यादाश्त की हदों पर
पस्ती के दिनों में
मुझे कहाँ मिलेगा वह कोयला
मेरे ईश्वर
मुझे क्या करना चाहिए इस दिन का
जिसमें कोयला नहीं है
मुझे क्या करना चाहिये इस ठंड का
जो बराबर बढ़ती जा रही है
क्या मैं भी इंतज़ार करूँ
जैसे सब कर रहे हैं
क्या मैं उठूँ और अपने आप को बदल लूँ
एक कोयला झोंकने वाले बेलचे में
क्या मैं बाज़ार जाऊँ
और अपनी आत्मा के लिये खरीद लूँ
एक अच्छा-सा कनटोप!
मेरे ईश्वर
क्या मेरे लिये इतना भी नहीं कर सकते
कि इस ठंड से अकड़े हुए शहर को बदल दो
एक जलती हुई बोरसी में!
- केदार
नाथ सिंह
|
|
|
|
धुँध में
अजीब मौसम है
यह आँसुओं सा
उमड़ता-जमता
धरती के सीने से
आह बन
जो उठता धुँआ
धरती के सीने पे
कहर-सा बरसता
धुँध बनकर
जम गए सपने
आँखों के काँच पे
और फैलता गया
अँधेरा रातभर -
फिसल-फिसल
काँपती उँगलियों के
ठँडे बेजान पोरों से
पर सूखी-नंगी मनकी
नादान टहनियाँ
करती रहीं
इन्तजार आज भी
जाने किसका
यूँ एड़ियों पे
उचक-उचक
-शैल अग्रवाल
|