अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शैल अग्रवाल की रचनाएँ- 

छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी

हाइकू में
दोस्त, योंही, आज फिर, जीवन, आँसू

संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध में
शुभकामनाएँ–पिचकारी यह
होली – होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास– आई पगली
                 कटघरे में
                - मुस्कान
                - ममता

पिता की तस्वीर– बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व– तमसो मा ज्योतिर्गमय
                - दिया और बाती
                - धूमिल रेखा
जग का मेला– चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ : दो क्षणिकाएँ

 

देखो ना

दुनिया के इस घने
जटिल जंगल में
यह बालक आज भी
भटक रहा है
वे रंग–बिरंगी तितलियाँ
जो हमने–तुमने कभी
मिलकर साथ–साथ पकड़ी थीं
इसके अन्दर आज भी
फड़फड़ा रही हैं –
तुमने तो कहा था कि
धूप जब फूलों को चूमेंगी
और हवा की ताल पर
टहनियाँ नाचेंगी तो
हथेलियों में बन्द
ये तितलियाँ
परियों के देश
उड़ जाएँगी –
धूप तो आज भी
गुनगुनी है
और दूरतक फैली
फूलों की खुशबू भी
पूरा का पूरा ही
उपवन महका रही है
टहनियों की लम्बी
चिकनी बाँहें पकड़ें
हवा भी रोज ही
एक नया रास रचाती है
फिर ये
सारी कि सारी तितलियाँ
घूम–फिरकर मेरे होठों
और पलकों पर ही
क्यों आ बैठती हैं
देखो ना माँ मैंने तो
घरकी सारी खिड़कियाँ
और दरवाजे सभी
बरसों से
खुलेही
छोड़ रखे हैं

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter