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अनुभूति में देवी नागरानी की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
गीत गाती जा सबा
घर की चौखट
जर्द चेहरा हुआ है
बेबसी में भी
हिल गई बुनियाद

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
चमन में
डर
ज़माने से रिश्ता
दिल से दिल तक

दीवार-ओ-दर
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
बढ़ रही है आजकल

बादे बहार आई
बेताबियों को हद से
मुझे भा गई
मैं खुशी से
मेरे वतन की ख़ुशबू
रियासत जब भी ढहती है
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

सुनते हैं कहा
शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

 

घर की चौखट

घर की चौखट पार करने की घड़ी थी आ गयी
फ़ैसले के बीच में बापू की पगड़ी आ गयी

प्यार उनका स्वार्थ मेरा सामने दोनों ही थे
बीच में उनके ये कैसी खैरख्वाही आ गयी

ओट में जिसके खड़ी बारिश से बचने के लिए
बनके मेरी मौत वो दीवार गीली आ गयी

प्यार और कर्तव्य में बँटवारा जब होने लगा
सामने तब माँ के चेहरे की उदासी आ गयी

बेजमीरी के जो नक्शे-पा थे मेरे सामने
कुछ विवशता उनपे चलने की मेरी भी आ गयी

झुक गया क्यों अक़्ल और ईमान का पलड़ा वहाँ
सामने मुफलिस के जब भी भूख रोती आ गयी

जिन्दगी की आपाधापी में झुलसते दिन रहे
ख़्वाबों को महकाने लेकिन रातरानी आ गयी

२४ मार्च २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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