दिल से दिल तक
दिल से दिल तक जुड़ी हुई है ग़ज़ल
बीच में उनके पुल बनी है ग़ज़ल
छू ले पत्थर तो वो पिघल जाए
ऐसा जादू भी कर गई है ग़ज़ल
सात रंगों की है धनुष जैसी
स्वप्न-संसार रच रही है ग़ज़ल
सोच को अपनी क्या कहूँ यारो
रतजगे करके कह रही है ग़ज़ल
रूह को देती है सुकूं 'देवी'
ऐसी मीठी-सी रागिनी है ग़ज़ल
२१ जुलाई २००८ |