अनुभूति में देवी नागरानी की
रचनाएँ नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है
अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों
के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए
सदा धूप में
सीप में मोती
शोर दिल में
कविताओं में-
भारत देश महान |
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ज़माने से रिश्ता
ज़माने से रिश्ता बना के तो देखो
समझ बूझ से तुम निभाकर तो देखो
यह पुल प्यार का एक, नफ़रत का दूजा
ये अन्तर दिलों से मिटाकर तो देखो
गिराते हो अपनी नजर से जिन्हें तुम
उन्हें पलकों पर भी बिठाकर तो देखो
उठाना है आसान औरों पे ऊँगली
कभी खुद पे ऊँगली उठाकर तो देखो
न जाने क्या खोकर है पाते यहाँ सब
मिलावट से खुद को बचाकर तो देखो
न घबराओ देवी ग़मों से तुम इतना
जरा इनसे दामन सजाकर तो देखो
२४ मार्च २०१४
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