बादे बहार आई
बादे-बहार आई, ख़ुशबू-ख़ुमार लाई
ख़ुशियों का है ये मौसम, परिवार को बधाई
सूरजमुखी खिली है, खुश रंग हैं
फज़ाएँ
बादे-सबा ने कैसी प्यारी ग़ज़ल बनाई
भँवरो की गुनगुनाहट कोयल की कूक
प्यारी
उनसे चुराके सरगम, ये धुन मधुर बनाई
चंचल-सी एक तितली चूमे सुमन
सुमन को
शरमा के हर कली भी, जाने क्यों मुस्कराई
बरसात भीनी-भीनी उस पर घनी
घटाएँ
शबनम की ओस जैसे मन को भिगोने आई
चारों तरफ़ हैं झूमे झोंके हवा
के 'देवी'
मदहोश होके जैसे फस्ले-बहार आई
गुलज़ार महके 'देवी' दिल दिल को
दे दुआएँ
मंथन किया जो मन का अनुभूति सुख की पाई
२१ जुलाई २००८ |