अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में देवी नागरानी की रचनाएँ

नई ग़ज़लों में-
ज़माने से रिश्ता
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
मुझे भा गई
रियासत जब भी ढहती है

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
दिल से दिल तक
दीवार-ओ-दर
बढ़ रही है आजकल
बादे बहार आई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

  मुझे भा गई

मुझे भा गई, मेरे साकी ग़ज़ल
कि है सोमरस की पियाली ग़ज़ल

पिरोकर वो शब्दों में अनुभूतियाँ
मेरी सोच को है सजाती ग़ज़ल

नई मेरी शैली, नया है कथन
है इक अनसुनी-अनकही-सी ग़ज़ल

मचलती है अश्कों-सी पलकों पे वो
मेरे मन की है बेकरारी ग़ज़ल

सभी के जो सुख-दुःख में शामिल रहे
उसी को तो कहते हैं अच्छी ग़ज़ल

अधर आत्मा के भी थर्रा उठे
तरन्नुम की धुन पर जो थिरकी ग़ज़ल

कभी धूप-सी है, कभी छाँव-सी
कभी दूधिया चाँदनी-सी ग़ज़ल

गुलों की है इसमें तरो-ताज़गी
मैं लाई हूँ इक महकी-महकी ग़ज़ल

न वो उसको छोड़े, न 'देवी' उसे
है तन्हाइयों की सहेली ग़ज़ल

२ मार्च २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter