मुझे भा गई मुझे भा गई, मेरे साकी ग़ज़ल
कि है सोमरस की पियाली ग़ज़ल
पिरोकर वो शब्दों में अनुभूतियाँ
मेरी सोच को है सजाती ग़ज़ल
नई मेरी शैली, नया है कथन
है इक अनसुनी-अनकही-सी ग़ज़ल
मचलती है अश्कों-सी पलकों पे वो
मेरे मन की है बेकरारी ग़ज़ल
सभी के जो सुख-दुःख में शामिल रहे
उसी को तो कहते हैं अच्छी ग़ज़ल
अधर आत्मा के भी थर्रा उठे
तरन्नुम की धुन पर जो थिरकी ग़ज़ल
कभी धूप-सी है, कभी छाँव-सी
कभी दूधिया चाँदनी-सी ग़ज़ल
गुलों की है इसमें तरो-ताज़गी
मैं लाई हूँ इक महकी-महकी ग़ज़ल
न वो उसको छोड़े, न 'देवी' उसे
है तन्हाइयों की सहेली ग़ज़ल
२ मार्च २००९
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